स्वामी श्रीरामसुखदासजी का गुरु के विषय मे मंतव्य..

प्रातः स्मरणीय श्रद्धेय स्वामी श्रीरामसुखदासजी का गुरु के विषय मे मंतव्य...!!!

प्रश्न:- वास्तविक गुरु कौन होता हैं एवम् उसकी क्या पहचान हैं?

उत्तर:- जो ह्रदय से हमारा कळ्याण चाहे वही वास्तविक गुरु हैं। जिसकी शिष्य बनाने, धन, आश्रम, मान बढ़ाई, नाम अथवा प्रतिष्ठा की चाहत हैं अथवा वह आपसे कुछ भी चाहे तो वह कभी आपका वास्तविक गुरु नही हो सकता।

सच्चे महात्मा की दुनिया को गरज होती हैं, लेकिन जिसको किसी की भी गरज नही होती वहीँ वास्तविक गुरु होता हैं। जिनको गुरु बनने का शौक हैं वहीँ कहते हैं कि गुरु बनाना बहुत जरुरी हैं, बिना गुरु के मुक्ति नही होती।

चेला यदि सच्चा हैं तो उसे गुरु अपने आप मिलता है। गुरु ढूढ़ने की जरुरत नही होती। वास्तविक गुरु तो सच्चे शिष्य को ढूंढते हैं सच्चे गुरु मे शिष्य के उद्धार करने की सामर्थ्य होती हैं।

अधिकांश भगवत्प्राप्त संत किसी को चेला नही बनाते क्योकि चेले भगवान् को तो पकड़ते नही, गुरु को ही पकड़ लेते हैं। इससे चेले तथा गुरु दोनों की हानि होती हैं। जो भगवान् की जगह स्वयं की पूजा करवाते है वो निरे पाखंडी हैं।

गुरु दुसरो को भी गुरु ही बनाते हैं। जो दुसरो को चेला बनाते हैं वो समर्थ नही होते। भगवान किसी को अपना चेला नही अपितु मित्र बनाते हैं।जो वास्तव मे बड़ा होता हैं उसको छोटा बनने मे लज्जा नही आती।भगवान् होकर श्रीकृष्ण अर्जुन के सारथि बन गए।

प्रश्न:- गुरु कौन होता हैं?

उत्तर:- किसी विषय मे जिससे ज्ञान रुपी प्रकाश मिले,उस विषय मे वह हमारा गुरु हैं। गुरु का काम मनुष्य को भगवान् के सम्मुख करना हैं। शिष्य को जब तत्वज्ञान हो जाता हैं, तब उसके मार्गदर्शक का नाम "गुरु" होता हैं। शिष्य को जब तक ज्ञान नही हुआ तब तक वह गुरु भी नही हुआ।

महिमा उस गुरु की हैं जिसके साथ गोविन्द भी खड़े हैं, अर्थात भगवान् की प्राप्ति करा दी हो। गोविन्द को तो बताया नही और गुरु बन गए- यह कोरी ठगाई हैं।
असली गुरु में चेले के कल्याण की तथा चेले में गुरु के आज्ञा पालन की गंभीर इच्छा होना आवश्यक हैं।

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